मनुष्य
मैं कहने को आबाद हूं
पर खुद से ही अनजान हूं
पेड़ काटना, गंदगी फैलाना
इसे मानता अभिमान हूं
हैवान हूं ,शैतान हूं
या खुशियों की सौगात हूं
शहरों को रोशन करता
पर जंगलों को बनाता विराना हूं
शक्ति से भरपूर
ऊर्जा का भंडार हूं
मैं ही रचयिता
मैं ही विनाश हूं
मंगल को स्वर्ग बनाता
और पृथ्वी पर जंग के लिए तैयार हूं
वरदान हूं, अभिशाप हूं
पर ना ही मैं देव
ना ही कोई राक्षस सम्राट हूं
हां मैं, मैं मनुष्य
मैं अपने ही अंत का काल हूं ||
– सुमंत सिंह
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