सृष्टि का मूल मंत्र
जो धरती से सूर्य का योजन नाप दे,
जो नाप दे सौ हाथियो का भार,
तनिक से षड़ मे जो पार करे,
हर अनुभूति के प्रकार l
जिसे समझना आसान है,
पर उतना ही पेचीदा भी,
जो एक पल मे समुद्र बने,
और दूसरे ही पल मे बून्द भी l
जिसमे ठेहराव भी हैँ, और गति भी,
जो वरदान भी है, और अभिश्राप भी,
जो सम्पूर्ण भी है, और आधा भी,
ये बंजर भी है, और उर्वर भी,
जो एक छाया भी है, और प्रकाश भी,
जो प्रेम का सागर भी है, और क्रोध की आग भी,
जिसके बिना ये जीवन अधूरा भी है, और पूरा भी।
जिसने न जाने कितने युग देखे,
जो हर युग मे नवीन बना रहा,
जो सृष्टि का निर्माता भी है, और विध्वंसक भी।
जो अनंत ब्रह्मांड में विचरण करता, जो हर दिल में धड़कता है,
जिसे कोई देख न सके, पर हर कोई महसूस कर सके।
जो सत्य का दर्पण है, जो हर मनुष्य का आराध्य है,
जो प्रकृति का नियम है, और जीवन का सार है।
जो हर आहट में संगीत है, जो हर मौन में रहस्य है,
जिसकी छांव में शांति है, और जिसकी आग में शक्ति है।
जो एक बंधन भी है, और एक मुक्ति भी,
जो अनंत यात्रा का साथी है, और अंत का संकेत भी।
जिसका स्पर्श ममता है, जिसका क्रोध विनाश है,
जो हर पल हर कण में बसता है, जो एक पल में सृष्टि रचता है।
जो हर पग में प्रेरणा है, जो हर धड़कन में जादू है,
जो हर साँस में जीवन है, और हर मृत्यु में नवजीवन है।
जो अदृश्य भी है, और प्रत्यक्ष भी,
जो धुंधला भी है, और स्पष्ट भी।
जो अनादि है, और अनंत भी,
जो हर रंग में रंगा है, और हर स्वर में गाया है।
जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का सार है, जो हर ह्रदय का प्यार है,
जो एक अद्वितीय सृजन है, और हर सृजन का आधार है।
जो जीवन का गीत है, और मृत्यु का संगीत है,
जो सब कुछ है, और कुछ भी नहीं।
ये वही है, जो तुम हो, और वही है, जो मैं हूँ,
जो हर किसी में व्याप्त है,
और यही सृष्टि का मूल मंत्र आधार है।।
– सुमंत सिंह
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